गुरुवार, 7 सितंबर 2017

धीरूभाई अंबानी


धीरूभाई अंबानी
जन्म28 दिसम्बर 1932
मृत्यु6 जुलाई 2002 (उम्र 69)
मुंबईभारत
राष्ट्रीयताभारतीय
जातीयतागुजराती
व्यवसायरिलायंस उद्योग के संस्थापक
जीवनसाथीकोकिलाबेन
बच्चेमुकेश अंबानी
अनिल अंबानी
नीता कोठारी
दीप्ति सालोंकर
पुरस्कार पद्म विभूषण(2016)

धीरूभाई अंबानी

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धीरजलाल हीरालाल अंबानी (28  दिसम्बर,1933 , - 6  जुलाई2002) जिन्हें धीरुभाई भी कहा जाता है) भारत के एक चिथड़े से धनी व्यावसायिक टाइकून बनने की कहानी है जिन्होनें रिलायंस उद्योग की स्थापना मुम्बई में अपने चचेरे भाई के साथ की। कई लोग अंबानी के अभूतपूर्व/उल्लेखनीय विकास के लिए अन्तरंग पूंजीवाद और सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों तक उनकी पहुँच को मानते हैं क्योंकि ये उपलब्धि अति दमनकारी व्यावसायिक वातावरण में पसंदीदा वर्ताव द्वारा प्राप्त की गई थी। (लाइसेंस राज ने भारतीयों को दबाया।1990  तक भारतीय व्यवसाय का गला घोंट दिया और उन्हीं को राजनीतिज्ञों ने लाइसेंस प्रदत्त किया जो की उनके इष्ट थे, जिसने प्रतियोगिता के कोई आसार नही छोड़े)। अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को 1977  में सार्वजानिक क्षेत्र में सम्मिलित किया और 2007  तक परिवार (बेटे अनिल और मुकेश) की सयुंक्त धनराशी 100  अरब डॉलर थी, जिसने अम्बानियों को विश्व के धनी परिवारों में से एक बना दिया

प्रारंभिक जीवन



धीरुभाई अंबानी का जन्म 28  दिसंबर, 1933 , को जूनागढ़ (जो की अब भारत के गुजरात राज्य में है) चोरवाड़ में हिराचंद गोर्धनभाई अंबानी और जमनाबेन के बहुत ही सामान्य मोध परिवार में हुआ था। यद्यपि वे गुजरात में जन्मे थे, जो की एक सामाजिक-धार्मिक समूह है सम्बन्ध रखता है और पहले उत्तर पश्चिमी भारत का प्रांत था और विभाजन के बाद अब हिन्‍दुस्‍तान कि संपत्ति है/हिन्‍दुस्‍तान के अधिकार में है। वे एक शिक्षक के दूसरे बेटे थे। कहा जाता है की धीरुभाई अंबानी ने अपना उद्योग व्यवसाय सप्ताहंत में गिरनार कि पहाड़ियों पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े बेच कर किया था।
जब वे सोलह वर्ष के थे तो एडन, यमन चले गए। उन्होंने अ के साथ काम किया। बेस्सी और कं. (A. Besse & Co.) के साथ 300  रूपये के वेतन पर काम किया। दो साल उपरांत, अ.बेस्सी और कं. शेल (Shell) उत्पादन के वितरक बन गए और एडन (Aden) के बंदरगाह पर कम्पनी के एक फिल्लिंग स्टेशन के प्रबंधन के लिए धीरुभाई को पदोन्नति दी गई।
उनका कोकिलाबेन के साथ विवाह हुआ था और उनको दो बेटे थे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) और दो बेटियाँ नीना कोठारी (Nina Kothari) और दीप्ति सल्गाओकर(Deepti Salgaocar).

रिलायंस वाणिज्यिक निगम

1958 में, धीरुभाई भारत वापस आ गए और 15000.00 की पूंजी के साथ रिलायंस वाणिज्यिक निगम (Relianc Commercial Corporation) की शुरुआत की. रिलायंस वाणिज्यिक निगम का प्राथमिक व्यवसाय पोलियस्टर के सूत का आयात और मसालों का निर्यात करना था।
वे अपने दुसरे चचेरे भाई चंपकलाल दिमानी (Champaklal Damani), जो उनके साथ ही एडन (Aden), यमन में रहा करते थे, के साथ साझेदारी में व्यवसाय शुरू की.रिलायंस वाणिज्यिक निगम का पहला कार्यालय मस्जिद बन्दर (Masjid Bunder) के नर्सिनाथ सड़क पर स्थापित हुयी. यह एक टेलीफोन, एक मेज़ और तीन कुर्सियों के साथ एक 350 वर्ग फुट का कमरा था। आरंभ में, उनके व्यवसाय में मदद के लिए दो सहायक थे। 1955 में, चंपकलाल दिमानी और धीरुभाई अंबानी की साझेदारी खत्म हो गयी और धीरुभाई ने स्वयं शुरुआत की. यह माना जाता है की दोनों के स्वभाव (temperaments) अलग थे और व्यवसाय कैसे किया जाए इस पर अलग राय थी। जहां पर श्री दमानी एक सतर्क व्यापारी थे और धागे के फैक्ट्रियों/भंडारों के निर्माण में विश्वास नही रखे थे, वहीं धीरुभाई को जोखिम लेनेवाले के रूप में जानते थे और वे मानते थे कि मूल्य वृद्धि कि आशा रखते हुए भंडारों का निर्माण भुलेश्वर, मुंबई के इस्टेट में किया जाना चाहिए, ताकि लाभ बनाया जाए/मुनाफा बनाया जाए. 1968 में वे दक्षिण मुंबई (South Mumbai) के अल्टमाउंट सड़क को चले गए/स्थान्तरित हो गए। 1960 तक अंबानी की कुल धनराशि 10 लाख रूपये आंकी गयी।
रिल्यांस टेक्सटाइल्स
वस्त्र व्यवसाय में अच्छे अवसर का बोध होने के कारण, धीरुभाई ने 1966 में अहमदाबाद, नैरोड़ा (Naroda) में कपड़ा मिल की शुरुआत की. पोलियस्टर के रेशों/सुतों का इस्तेमाल कर के वस्त्र का निर्माण किया गया। धीरुभाई ने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। "विमल" के व्यापक विपणन ने इसे भारत के अंदरूनी इलाकों में एक घरेलु नाम बना दिया. मताधिकार खुदरा विक्रेता केन्द्र की शुरुआत हुयी और वे "केवल विमल" छाप के कपड़े बेचने लगे. 1975 में विश्व बैंक के एक तकनिकी मंडली ने 'रिलायंस टेक्सटाइल्स' निर्माण इकाई का दौरा किया। इकाई की दुर्लभ खासियत यह थी की इसे उस समय में "विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट" माना गया।

आरंभिक सार्वजानिक प्रस्ताव

धीरुभाई अंबानी को इक्विटी कल्ट/सामान्य शेयर (equit cult) को भारत में प्रारम्भ करने का श्रेय भी दिया जाता है। भारत के विभिन्न भागों से 58,000 से ज्यादा निवेशकों ने 1977 में रिलायंस के आईपीओ (IPO) की सदस्यता ग्रहण की. धीरुभाई गुजरात के ग्रामीण लोगों को आश्वस्त कर सके कि उनके कंपनी के शेयरधारक होने से उन्हें अपने निवेश पर केवल लाभ ही मिलेगा.
रिलायंस इंडस्ट्रीज/रिलायंस उद्योग (Reliance Industries) यह विशेषता रखता हैं कि यही एक ऐसा निजी क्षेत्र की कम्पनी (Private Sector Company) है जिसके कई वार्षिक आम बैठकें (Annual General Meetings) स्टेडियम/मैदानों (stadium) में हुई है। 1986 में, रिलायंस इंडस्ट्रीज/रिलायंस उद्योग की वार्षिक आम बैठक क्रॉस मैदान (Cross Maidan) मुंबई में की गई जिसमे 35,000 शेयरधारकों और रिलायंस के परिवार ने भाग लिया।
धीरुभाई बड़ी संख्या में प्रथम खुदरा निवेशकों को संतुष्ट कर सके की वे रिलायंस की कहानी को जाहिर/स्थापित करने के लिए भाग लें और मेहनत से कमाए गए पैसे को रिलायंस टेक्सटाइल आईपीओ में लगायें, यह वादा करते हुए कि उनके विशवास के बदले उनके निवेश पर उन्हें पुख्ता मुनाफा मिलेगा.
1980  तक अंबानी की कुल राशि को 1  बिलियन रुपयों तक आँका गया।

धीरुभाई का शेयर विनिमय पर नियंत्रण

1982 में, रिलायंस इंडस्ट्रीज/रिलायंस उद्योग अंशतः परिवर्तनीय डिबेंचर के अधिकार मुद्दे के ख़िलाफ़ खड़ा हुआ। यह अफवाह उडाई गई कि कम्पनी (company) अपने स्टॉक मूल्यों को एक इंच भी न गिरने देने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। मौके कि समझ रखते हुए, एक बेयर कार्टेल जो कि कलकत्ता के स्टॉक ब्रोकरों का समूह था ने रिलायंस के शेयरों कि खुदरा बिक्री (short sell) शुरू कर दी. इसको रोकने के लिए, एक स्टॉक ब्रोकरों का समूह जिसे हाल तक में "रिलायंस के मित्र" के रूप में संदर्भित किया जाता रहा रिलायंस उद्योग के छोटे बिक्री किए हुए शेयर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से खरीदने लगे.
बियर कार्टेल इस विश्वास पर कार्य कर रहे थे कि बुल्स (Bulls) लेनदेन को पुरा करने के लिए नकदी से कम होंगे. और ''बदला (Badla)'' व्यापार प्रणाली जो की उस समय बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में जारी था के तहत समझौते के लिए तैयार होंगे. बुल्स प्रतिशेयर को 152 रूपये में खरीदने को उस दिन तक बनाये रखा जब तक समझौता नही हो गया। समझौते के दिन, बियर कार्टेल को पीछे ले लिया गया/वापस ले लिया, जब बुल्स ने शेयरों की भौतिक सुपुर्दगी की मांग की. लेनदेन को पुरा करने के लिए, अति आवश्यक नकदी को स्टॉक ब्रोकरों को दिया गया, जिन्होनें किसी और से नही बल्कि धीरुभाई अंबानी रिलायंस के शरेस ख़रीदे थे। समझौता नहीं होने के मामले में, बुल्स ने 35 रूपये (Rs.) प्रति शेयर के ''अनबदले''(जुर्माना राशि) की मांग की. इसके साथ रिलायंस के शेयर की मांग बढ़ गई और मिनटों में 180 रूपये तक ऊपर पहुँच गई। इस समझौते ने बाजार में खाफी हल्ला मचा दिया और धीरुभाई अंबानी स्टॉक बाज़ार के निर्विवादित सम्राट बन गए। उन्होंने अपने आलोचकों को साबित कर दिया कि रिलायंस के साथ खेलना कितना खतरनाक था।
स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही थी। इस स्थिति का समाधान खोजने के लिए, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को तीन व्यावसायिक दिनों तक बंद कर दिया गया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और 'अन्बदला' को 2 रूपये तक नीचे ले आए यह तय करते हुए कि बियर कार्टेल को आने वाले कुछ दिनों में शेयर प्रदान करने पड़ेंगे. बियर कार्टेल ने रिलायंस के शेयर ऊँचे दामों में बाज़ार से ख़रीदे और यह भी जानने में आया कि धीरुभाई अंबानी ने स्वयं इन शेयरों को बियर कार्टेल को मुहैया कराया और बियर कार्टेल के जोखिम से अच्छा मुनाफा/स्वस्थ लाभ कमाया.
इस हादसे के बाद कई सवाल उनके आलोचकों और प्रेस द्वारा उठाये गए। बहुत सारे लोग यह समझ नही पाए कि संकट के समय में एक धागे का व्यापारी कुछ सालों पहले इतनी बड़ी नकद राशि कैसे बना सकता है/पा सकता है। इसका जवाब संसद में तात्कालिक वित्त मंत्री प्रणब मुख़र्जी (Pranab Mukherjee) ने दिया. उन्होंने सभा को सूचित किया कि एक अप्रवासी भारतीय ने रूपये (Rs.) 22 करोड़ तक निवेश 1982-83 तक रिलायंस में 22 करोड़.ऐसे निवेश कई कम्पनियों जैसे क्रोकोडाइल, लोटा और फिआस्को के मध्यम से की गए। ये कम्पनियां शुरुआती तौर पर state of Man में पंजीकृत की गयी थीं। दिलचस्प बात यह थी कि इन कम्पनियों के पर्वर्तकों या मालिकों के एक समान कुलनाम थे शाह (Shah).इस घटना पर की गई एक जांच में भारतीय रिजर्व बैंक कुछ भी अनैतिक और गैरकानूनी कार्य या लेनदेन नहीं खोज पाई जो की रिलायंस और उसके सहायकों द्वारा किया गयी थी।

वैविध्यकरण

अपने कार्यकाल में, धीरुभाई ने व्यवसाय को प्रमुख विशेषज्ञता के रूप में पेट्रोरसायन (petrochemicals) और अतिरिक्त रुचियों/हितों में दूरसंचार, सुचना प्रोद्योगिकी, उर्जा, बिजली (power), फुटकर (retail), कपड़ा/टेक्सटाइल (textile), मूलभूत सुविधाओं की सेवा (infrastructure), पूंजी बाज़ार (capital market) और प्रचालन-तंत्र (logistics) को विविधता प्रदान की. कंपनी को पूर्ण रूप में बीबीसी द्वारा एक व्यावसायिक साम्राज्य जिसका सालाना कारोबार $ 12 बिलियन है और 85,000 मजबूत कार्यबल है के रूप में वर्णित किया गया।

आलोचना

पोलिएस्टर राजकुमार का पत्रावरणबद्ध पृष्ठ धीरुभाई अंबानी का उदय.लेखक: हमीश मैकडोनाल्ड, प्रकाशक एलन और अनविन पीटीवाई., लिमिटेड (ऑस्ट्रेलिया), आईएसबीऍन 1-86448-468-3] अपने जादुई स्पर्श के वावजूद, अंबानी को अपने लचीले मूल्यों और अनैतिक प्रवृति जो की उसमे दौड़ रहे थे, उसे लेकर जाना जाता था। उनके जीवनी लेखक ख़ुद इस बात को स्वीकारते हैं कि अनैतिक व्यवहार और अवैध कार्यों कि कुछ एक ऐसी घटनाएँ हैं जिसका उन्होंने ख़ुद अनुभव किया जैसे कि सार्वजानिक मुद्रा का विकृतीकरण करना जबकि वे दुबई में पेट्रोल पम्प पर एक मामूली कर्मचारी थे। उनपर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने सरकारी नीतियों को अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल चालाकी से बदला और उन्हें सरकारी चुनावों में राजा बनानेवाला माना जाता है। हालाँकि ज्यादातर मीडिया स्रोतों में व्यापार-राजनीति कि सांठ-गाँठ के बारे में बोलने कि प्रवृति थी, अंबानी के खेमे ने मिडिया से हमेशा ज्यादा सुरक्षा और शरण का लाभ/आनंद उठाया जो कि सारे देश को एक तूफान कि तरह लपेटी हुयी थी।

नसली वाडिया के साथ संघर्ष

बॉम्बे डाइंग (Bombay Dyeing) के नसली वाडिया (Nusli Wadia) एक समय में धीरुभाई और रिलायंस उद्योग के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी थे। नसली वाडिया और धीरुभाई दोनों अपनी राजनितिक क्षेत्र/घेरे में अपनी पहुच के लिए जाने जाते थे और उनमें योग्यता थी कि वे मुश्किल से मुश्किल लाइसेंस को भी उदारीकरण-पूर्व अर्थव्यवस्था में अनुमोदित करा लेते थे।
1977-1979 में, जनता पार्टी (Janata Party) के शासन के दौरान, नसली वाडिया ने 60,000 सालाना टन डी-मिथाइल टेरीफटहेलेट (Di-methyl terephthalate)(डीएमटी) संयंत्र लगाने की अनुमति प्राप्त कर ली. जब तक आशय का पत्र लाइसेंस में तब्दील हुआ, कई बाधाएं राह में आयीं. अंततः, 1981 में, नसली वाडिया को संयंत्र का लाइसेंस प्रदान किया गया। इस घटना ने दो दलों के बीच उत्प्रेरक के रूप में काम किया और प्रतिस्पर्धा ने बदसूरत मोड़ ले लिया।

इंडियन एक्सप्रेस के लेख

एक समय में रामनाथ गोएंका (Ramnath Goenka) धीरुभाई अम्बानी के दोस्त थे। माना जाता हैं की रामनाथ गोयनका नसली वाडिया के करीब थे। कई मौकों पर, रामनाथ गोएंका दोनों लड़ने वाले गुटों के बीच हस्तक्षेप करने की कोशिश करते थे ताकि दुश्मनी का अंत किया जाए. गोएंका और अंबानी, अंबानी के भ्रष्ट व्यावसायिक आदतों से प्रतिद्वानी बन गए और उनके अवैध/गैरकानूनी कार्यों के कारन गोयंका को उचित हिस्सा नही मिल पा रहा था। बाद में, रामनाथ गोयंका ने नसली वाडिया को समर्थन के लिए चुना. एक समय में, माना जाता है कि रामनाथ गोयंका ने 'नसली एक अँगरेज़ आदमी है कहा. वे अंबानी को संभाल नही सके. मैं एक बनिया हूँ मैं जाता हूँ कि कैसे ख़त्म करना है"....
इंडियन एक्सप्रेस समूह का प्रधान, |रामनाथ गोएंका (Ramnath Goenka) यह फाइल चित्र श्री गोएंका के एक्प्रेस टावर्स/मंजिल, नरीमन पॉइंट (Nariman Point) के सायबान, बॉम्बे में लिया गया था।]] जैसे-जैसे दिन बितते गए, इंडियन एक्सप्रेस, एक बड़ा चिटठा (broadsheet), जिसका दैनिक प्रकाशन उनके द्वारा किया जाता था में रिलायंस उद्योग (Reliance Industries) और धीरुभाई के ख़िलाफ़ लेखों की श्रृंखला हुआ करती थी जो ये दावा करती थीं कि धीरुभाई अनैतिक व्यवसायिक पद्धतियों का प्रयोग अधिकाधिक मुनाफे को बढ़ने के लिए कर रहे हैं। रमानाथ गोएंका इंडियन एक्सप्रेस में अपने कर्मचारियों को मामले कि तहकिकात के लिए इस्तेमाल नही करते थे बल्कि अपने करीबी विश्वस्त सलाहकार और अधिकृत लेखापाल एस. गुरुमूर्ति को यह कम सौंपते थे। इस कार्य के लिए गुरुमूर्ति (S. Gurumurthy). एस के अलावा. गुरुमूर्ति और एक और पत्रकार मानेक डावर जो कि इंडियन एक्सप्रेस के नामावली पर नही थे ने, कहानियो का योगदान करना प्रारम्भ कर दिया. जमनादास मूर्जानी, एक व्यावसायिक जो कि अंबानियों के ख़िलाफ़ था, वह भी इस मुहीम का हिस्सा था।

अंबानी और गोएंका दोनों की आलोचना और सराहना सामान रूप से समाज के वर्गों द्वारा कि जाती थी। लोगों ने गोएंका कि आलोचना की कि वह एक राष्ट्रीय समाचार पत्र का इस्तेमाल अपने व्यक्तिक शत्रुता के कारण कर रहा है। आलोचक मानते थे कि कई ऐसे दुसरे व्यावसायिक इस देश मैं हैं जो कि अनैतिक और अवैध तरीकों का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं पर गोएंका ने केवल अंबानी को ही अपने निशाने केलिए चुना न कि दूसरो को. आलोचक गोएंका कि बिना अपने नियमित कर्चारियों कि मदद से इन लेखों को चलाने कि योग्यता कि भी सराहना करते थे। धीरुभाई अंबानी को भी इसी बीच काफी पहचान और सराहना मिल रही थी। जनता का एक वार्ग धीरुभाई के व्यवसायिक समझ और अपनी इच्छानुसार तंत्र/व्यवस्था को वश में रखने कि योग्यता की प्रशंसा करने लगा था
इस संघर्ष का अंत तभी हुआ जब धीरुभाई अंबानी को सदमा लगा. जब धीरुभाई अंबानी सैन डिएगो (San Diego) में अच्छे हो रहे थे, उनके बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) कामकाज देख रहे थे/कार्य का प्रबंधन कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस ने रिलायंस कि तरफ़ बंदूकें मोड़ लीं और सरकार पर सीधा-सीधा आरोप लगाने लगे कि वे रिलायंस उद्योग को दण्डित करने के लिए कुछ ज्यादा नही कर रही है। वाडिया-गोएंका और अंबानियों के बीच लडाई ने अब नई दिशा ले ली थी और राष्ट्रीय संकट बन गई थी। गुरुमूर्ति और दुसरे पत्रकार मुल्गाओकर राष्ट्रपति ग्यानी जेल सिंह के साथ रहे और उनकी तरफ़ से प्रधानमंत्री को एक प्रतिकूल फर्जी पत्र लिखा. इंडियन एक्सप्रेस ने राष्ट्रपति पत्र के एक मसौदे को छाप दिया, बिना ये अहसास किए/सोचे कि जैल सिंह ने राजीव गाँधी को पत्र भेजने से पहले ही पत्र में परिवर्तन कर दिए थेअंबानी इस बिन्दु पर लडाई जीत चुके थे। अब जब कि संघर्ष सीधे-सीधे प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और रामनाथ गोएंका (Ramnath Goenka) के बीच था, अंबानी चुपचाप बाहर निकलते बने. सरकार ने तब दिल्ली के सुंदर नगर में एक्सप्रेस अतिथि गहर पर छापा मारा और पाया कि मूल मसौदा सुधार के साथ मुल्गाओकर कि लिखावट में है। 1988-89 तक, राजीव की सरकार ने अभियोग की एक श्रृंखला इंडियन एक्सप्रेस के खिलाफ लगा दीं. फिर भी, गोएंका अपनी महिमा बनाये हुए थे, क्योंकि बहुत से लोगों के लिए उन्होंने आपातकाल के दौरान अपनी बहादुर छवि को बनाये रखा.

धीरुभाई और बी.पी सिंह

यह व्यापक रूप से माना जाता था की धीरूभाई के विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) जो राजीव गाँधी के बाद भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उतराधिकारी हुए के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नही थे। मई 1985 , में, वी.पी. सिंह ने अचानक शुद्ध Terephthalic अम्ल (Purified Terephthalic Acid) का खुले जेनरल लाइसेंस कि श्रेणी से आयात बंद करवा दिया. पोलियस्टर के धागे के निर्माण के लिए एक कच्चे माल के रूप में यह वस्तु महत्वपूर्ण था। इसने रिलायंस कि कार्यप्रणाली को संचालित करने में बहुत मुश्किल कर दी. बहुत सारे वित्तीय संस्थाओं से, रिलायंस भरोसे/ऋण का पत्र प्राप्त करने में कामयाब हो गया था जो की उसे पीटीऐ के पुरे साल की जरुरत को आयात करने की आज्ञा देगा जिसे सरकार की अधिसूचना कि श्रेणी में बदलाव किया जिसके अंतर्गत पीटीऐ आयात किया जा सकता है। 1990, में सरकार-अधिकृत वित्तीय संसथान जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India) और साधारण बीमा निगम ने रिलायंस समूह के लार्सेन और टुर्बो (Larsen & Toubro) के प्रबंधन नियंत्रण को पाने कि कोशिश को अवरुद्ध कर दिया/असफल कर दिया/धराशायी कर दिया. पराजय कि भनक लगने पर, अंबानियों ने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया. अप्रैल1989 में धीरूभाई जो कि L&टी के अध्यक्ष थे, को पद को डी. के लिए रास्ता बनाने के लिए छोड़ना पड़ा. ऍन. स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष

मृत्यु


एक बड़े सदमे के बाद धीरुभाई अंबानी को मुंबई के ब्रेच कैंडी अस्पताल में 24 जून2002 को भर्ती किया गया। यह दूसरा सदमा था, पहला उन्हें फरवरी 1986 नयूब वे एक हफ्ते के लिए कोमा की स्थिति में थे। डॉक्टरों की एक समूह उनकी जान बचाने में कामयाब न हो सके.उन्होंने 6 जुलाई (July 6), 2002, रात के11:50 के आसपास अपनी अन्तिम सांसें लीं. (भारतीय मानक समय)
उनके अन्तिम संस्कार न केवल व्यापारियों, राजनीतिज्ञों और मशहूर हस्तियों ने शिरकत की वरन हजारों आम लोगों ने भी भाग लिया। उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) ने हिंदू परम्परा के अनुसार अन्तिम संस्कारों को पूरा किया। उनका अन्तिम संस्कार, 7 जुलाई (July 7), 2002. को मुंबई के चंदनवाडी शवदाहगृह में करीब शाम के 4:30 बजे (भारतीय मानक समय) किया गया।
उनके उत्तरजीवी के रूप में उनकी पत्नी कोकिलाबेन और दो बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) और दो पुत्रियाँ नीना कोठारी (Nina Kothari) और दीप्ति सल्गाओंकर (Deepti Salgaonkar) बचे हैं।
धीरुभाई अंबानी ने अपनी लम्बी यात्रा बॉम्बे के मूलजी-जेठा कपड़े के बाज़ार से एक छोटे व्यापारी के रूप में शुरू की. इस महान व्यवसायी के आदर के सूचक/चिह्न के रूप में, मुंबई टेक्सटाइल मर्चेंट्स' ने 8 जुलाई (July 82002 को बाज़ार बंद रखने का फैसला किया/निर्णय लिया। धीरुभाई के मरने के समय, रिल्यांस समूह की सालाना राशि रूपये (Rs.) 75,000 करोड़ या USD $ 15 बिलियन. 1976-77, रिल्यांस समूह की सालाना राशि 70 करोड़ रूपये थे और ये याद रखा जाना चाहिए की धीरुभाई ने ये व्यवसाय केवल 15, 000(US$350) रूपये (Rs.) से शुरू की थी।

धीरुभाई अंबानी के बाद रिलायंस

नवंबर 2004, को मुकेश अम्बानी एक साक्षात्कार में अपने भाई से 'प्रभुत्व के मुद्दों' को लेकर मतभेद स्वीकारते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मतभेद "निजी कार्यक्षेत्र में आते हैं" . उनकी राय यह थी कि इसका कोई प्रभाव कंपनी के कार्यप्रणाली पर नहीं पड़ेगा, यह कहते हुए की रिलायंस पेशेवरों द्वारा प्रबंधित मजबूत कंपनियों में से एक है। रिलायंस उद्योग की भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्ता को मानते हुए, इस मुद्दे को मीडिया में विस्तृत विज्ञापन मिला.
कुंडापुर वामन कामथ (Kundapur Vaman Kamath), आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) के प्रबंध निदेशक जो अंबानी परिवार के करीबी दोस्त हैं, को इस मुद्दे को निपटाते हुए मीडिया में देखा गया। भाइयों ने अपनी माँ कोकिलाबेन अंबानी को इस मुद्दे का हल निकलने का काम सौंपा. 18 जून 2005, को कोकिलाबेन अंबानी ने कहा की एक विज्ञप्ति के द्वारा मामले का निपटान होगा.

रिलायंस साम्राज्य अंबानी भाइयों में बंट गया, मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को RIL और IPCL और छोटे सहोदर अनिल अंबानी (Anil Ambani) को रिल्यांस पूंजी, रिलायंस उर्जा और रिल्यांस इन्फोकॉम का सरनामा मिला. मुकेश अंबानी द्वारा चलायी जा रही संस्था को रियायंस उद्योग लिमिटेड के नाम से अभिहित किया गया जबकि अनिल समूह का नाम पुनः अनिल धीरुभाई अंबानी समूह (ADAG) में बदल दिया गया।

फ़िल्म

एक फ़िल्म जिस पर आरोप लगाया गया की यह धीरुभाई अंबानी के जीवन पर आधारित है को 12 जनवरी 2007 को विमोचित किया गया। मणि रत्नम द्वारा निर्देशित हिन्दी फिल्म गुरु और राजीव मेनन (Rajiv Menon) द्वारा छायांकन और ए.आर रहमान के संगीत से सजी एक आदमी के भारतीय व्यापार जगत में पहचान बनाने के संघर्ष को एक काल्पनिक शक्ति ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज द्वारा दिखाया गया है। फिल्मी सितारे अभिषेक बच्चनमिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty), ऐश्वर्या रायमाधवन (Madhavan) और विद्या बालन फिल्म में अभिषेक बच्चन ने गुरू कान्त देसी का किरदार निभाया है जो की धीरुभाई अम्बानी के चरित्र से मेल खाता है मिथुन चक्रवर्ती मानिक दा का अभिनय कर रहे हैं जो रामनाथ गोएंका (Ramanath Goenka) के वास्तविक जीवन से रहस्मयी ढंग से मिलता है और माधवन S का किरदार गुरुमूर्ति (S. Gurumurthy), जिन्हें भारत के सबसे भयानक सामूहिक युद्ध में रिलायंस समूह के ख़िलाफ़ अपने जहरीले आक्रमणों को सरअंजाम देने के लिए जाना जाता है, वे बीस साल पहले ही प्रसिद्ध हो गए थे। फिल्म गुरू कान्त देसाई के चरित्र की मदद से धीरुभाई अंबानी के आत्मबल को भी दर्शाती है। गुरुभाई जो नाम अभिषेक को दिया गया है, वह भी "धीरुभाई" के वास्तविक नाम से मेल खाता है।
== पुरस्कार और पहचान ==

प्रसिद्ध कथन/उद्धरण

प्रारम्भ से ही धीरुभाई को ऊँचे सम्मान के साथ देखा जाता था/ इज्जत के साथ देखा जाता था। पेट्रो-रसायन व्यवसाय में उनकी सफलता और चिथड़े से धनि बनने की कहानी ने उन्हें भारतीय लोगों के दिमाग में एक पंथ बना दिया था/आदर्श बना दिया था। एक गुणी व्यावसायिक नेता के अलावा वे एक प्रेरककर्त्ता भी थे। उन्होंने बहुत कम सार्वजानिक भाषण दिए, लेकिन उनके द्वारा कही गई बातें आज भी अपने मूल्यों के लिए याद रखी जाती हैं।
  • 30 मिलियन निवेशकों के साथ RIL को "विश्व की सबसे बड़ी कंपनी का खिताब मिल जाएगा
  • मैं न सुनने का आदि नही"/ मैं ना शब्द के लिए बहरा हूँ.
  • "रिलायंस के विकास की कोई सीमा नही.
मैं अपना दृष्टिकोण बदलता रहता हूँ. ये आप तभी कर सकते हैं जब आप सपना देखेंगे.
  • "बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे की सोचो. विचार किसी की बपौती नहीं./विचार पर किसी का एकाधिकार नहीं''
  • 'हमारे सपने हमेशा विशाल होने चाहिए. हमारी ख्वाहिशें हमेशा ऊंची/हमारी आकांक्षाएं हमेशा ऊंची हमारी प्रतिबद्धता हमेशा गहरी.
और हमारे प्रयास महान होने चाहिए.
यह मेरा सपना है रिलायंस और भारत के लिए.' 
    ''मुनाफा/लाभ बनाने के लिए आपको आमंत्रण की आवश्यकता नहीं.
      'अगर आप दृढ़ता और पूर्णता के साथ काम करें, तो कामयाबी ख़ुद आपके कदम चूमेगी/सफलता आपका अनुसरण करेगी.'
      • 'मुश्किलों में भी अपने लक्ष्यों को ढूँढिये और आपदाओं को अवसरों/मौकों में तब्दील कीजिये/बदलिए.
      • 'युवाओं को उचित माहौल दीजिये.उन्हें प्रेरित कीजिये. उन्हें जो जरुरत हैं उसकी मदद कीजिये. प्रत्येक में अनंत उर्जा का स्रोत है। वे फल देंगे/वे देंगे.
      • ''मेरे भूत, वर्तमान और भविष्य में एक समान पहलू है: समबन्ध और आस्था। ये हमारे विकास की नींव है।
      • 'हम लोगों पर दांव लगते हैं'
      • '' समय सीमा को छू लेना ही ठीक नही है, समय सीमा को हरा देना मेरी आशा है/चाह है।
      • 'हारें ना, हिम्मत ही मेरा विश्वास है।
      • 'हम अपने शाशकों को नही बदल सकते, पर हम उनके शाशन के नियम को बदल सकते हैं।
      • 'धीरुभाई एक दिन चला जाएगा. पर रिलायंस के कर्मचारी और शेयरधारक इसे चलाते रहेंगे/ बचाए रखेंगे. रिलायंस अब एक ऐसी अवधारण है जहाँ पर अब अंबानी अप्रासंगिक हो गए हैं।

      अनधिकृत जीवनी

      हमीश मैकडोनाल्ड, जो कि कई सालों तक दूर पूर्वी आर्थिक समीक्षा के दिल्ली ब्यूरो के प्रमुख रहे, उहोंनें एक 1998 में एक अनाधिकृत जीवनी को छापा जिसमें उनकी उपलब्धियों और खामियों दोनों कि रिपोर्ट थी, पर भारत में पुस्तक के छपने पर अंबानियों ने कानूनी करवाई की धमकी दी.

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