शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

पहाड़ से ऊँचा आदमी – Mountain Man Dashrath Manjhi

पहाड़ से ऊँचा आदमी – Mountain Man Dashrath Manjhi

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Dashrath Manjhi



आपने कई बार लोगों को यह कहते सुना होगा कि “अगर इंसान चाहे तो वह पहाड़ को भी हिला कर दिखा सकता है” .और आज हम आपको ऐसे ही व्यक्ति से रूबरू करा रहे हैं जिन्होंने अकेले दम पर सच-मुच पहाड़ को हिला कर दिखा दिया है.

 मैं बात कर रहा हूँ गया (Gaya) जिले के एक अति पिछड़े गांव गहलौर(Gahlaur) में रहनेवाले Dashrath Manjhi ( दशरथ मांझी) की। गहलौर एक ऐसी जगह है जहाँ पानी के लिए भी लोगों को तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. वहीँ अपने परिवार के साथ एक छोटे से झोपड़े में रहने वाले पेशे से मजदूर श्री  Dasrath Manjhi ने गहलौर पहाड़ को अकेले दम पर चीर कर 360 फीट लंबा और 30  फीट चौड़ा रास्ता बना दिया. इसकी वजह से गया जिले के अत्री और वजीरगंज ब्लाक के बीच कि दूरी 80 किलोमीटर से घट कर मात्र 3 किलोमीटर रह गयी. ज़ाहिर है इससे उनके गांव वालों को काफी सहूलियत हो गयी.
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और इस पहाड़ जैसे काम को करने के लिए उन्होंने किसी dynamite या मशीन  का इस्तेमाल नहीं किया, उन्होंने तो सिर्फ अपनी छेनी-हथौड़ी से ही ये कारनामा कर दिखाया. इस काम को करने के लिए उन्होंने ना जाने कितनी ही दिक्कतों का सामना किया, कभी लोग उन्हें पागल कहते तो कभी सनकी, यहाँ तक कि घर वालों ने भी शुरू में उनका काफी विरोध किया पर अपनी धुन के पक्के Dasrath Manjhi ने किसी की न सुनी और एक बार जो छेनी-हथौड़ी उठाई तो बाईस साल बाद ही उसे छोड़ा.जी हाँ सन 1960 जब वो 25 साल के भी नहीं थे, तबसे हाथ में छेनी-हथौड़ी लिये वे बाइस साल पहाड़ काटते रहे। रात-दिन,आंधी-पानी की चिंता किये बिना Dashrath Manjhi नामुमकिन को मुमकिन करने में जुटे रहे. अंतत: पहाड़ को झुकना ही पड़ा. 22 साल (1960-1982) के अथक परिश्रम के बाद ही उनका यह कार्य पूर्ण हुआ. पर उन्हें हमेशा यह अफ़सोस रहा कि जिस पत्नी कि परेशानियों को देखकर उनके मन में यह काम करने का जज्बा आया अब वही उनके बनाये इस रस्ते पर चलने के लिए  जीवित नहीं थी.
दशरथ जी के इस कारनामे के बाद दुनिया उन्हें Mountain Cutter और  Mountain Man के नाम से भी जानने लगी. वैसे पहले भी रेल पटरी के सहारे गया से पैदल दिल्ली यात्रा कर जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलनेका अद्भुत कार्य भी दशरथ मांझी ने किया था. पर पहाड़ चीरने के आश्चर्यजनक काम के बाद इन कामों का क्या महत्व रह जाता है?
सन 1934 में जन्मे श्री दशरथ मांझी का देहांत 18 अगस्त 2007 को कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए दिल्ली के AIIMS अस्पताल में हुआ.इनका अंतिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ किया गया. भले ही वो आज हमारे बीच न हों पर उनका यह अद्भुत कार्य आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा .
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क्या सन्देश देती है दशरथ मांझी कि ये मिसाल :
  • अगर इंसान चाहे तो सच-मुच पहाड़ हिला सकता है. वह कोई भी बड़ा से बड़ा असंभव दिखने वाला काम कर सकता है.
  • सफलता पाने के लिए ज़रूरी है की हम अपने प्रयास में निरंतर जुटे रहे . बहुत से लोग कभी इस बात को नहीं जान पाते हैं कि जब उन्होंने अपने प्रयास छोड़े तो वह सफलता के कितने करीब थे.
  • सफल होने के लिए संयम बहुत ज़रूरी है. जिंदगी के बाईस साल तक कठोर मेहनत करने के बाद फल मिला दशरथ जी को.
  • कौन कहता है कि “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” …. फोड़ सकता है.
  • निश्छल मन से समाज के लिए काम करने वाले कर्मयोगी अवश्य सफल होते हैं और ऐसे व्यक्ति ही इश्वर के सबसे करीब होते हैं.
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शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

Jack Ma Success Story In Hindi

Jack Ma Success Story In Hindi

कैसे 800 रूपये कमाने वाले शख्स ने बनाई 10 लाख करोड़ की कंपनी

यह एक ऐसे इंसान की कहानी है जिसने न जाने अपने जीवन में कितनी ही ठोकरें खाई और असफलताओं का मुँह देखा, फिर भी उसने कभी हार न मानी| जहाँ कभी वह एक टूर गाइड के रूप में सिर्फ महीने के सिर्फ 800 रूपए कमाया करता था, वहीं व्यक्ति आज 130,000 करोड़ रूपये की सम्पति के साथ  चीन की सबसे अमीर शख्शियत बन चुका है| एक रंक से राजा बनने की ये कहानी किसी और की नहीं बल्कि  ई-कॉमर्स  कंपनी ‘अलीबाबा डॉट कॉम(Alibaba.com)’ के संस्थापक जैक मा की है|

Jack Ma – Inspirational Success Story

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उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1964 को एक संगीतकार व कहानीकार के घर पर हंग्ज़्हौ, चीन, में हुआ| उनका बचपन एक ऐसे दौर से गुजरा जब चीन में साम्यवाद (कम्युनिज्म) अपने चरम पर था और वहाँ के नागरिकों का बाहरी दुनिया से लगभग कोई नाता न था| चीन की उस सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान, जैक मा के परिवार को कम्युनिस्ट पार्टी के विरोधी नेशनलिस्ट पार्टी का समर्थक होने के कारण काफी यातनाएँ सहनी पड़ी थीं|

कई बार फ़ैल हुए – JACK MA’s Life is Full of Failures

जैक मा (Jack Ma) को उनकी पारंपरिक शिक्षा से ज्यादा उनके जीवन की विफलताओं ने सिखाया| आपको जानकर शायद यह अचरज हो कि आज के चीन का सबसे अमीर व्यक्ति कभी पढ़ाई में बहुत ही कमजोर था| वे प्राथमिक विद्यालय की एक महत्वपूर्ण परीक्षा में 2 बार फैल हुए और माध्यमिक विद्यालय की परीक्षा में 3 बार फेल हुए|
जैक मा शुरू से ही अंग्रेजी भाषा सीखना चाहते थे| अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन सन 1972 में हंग्ज़्हौ आये थे और उससे हंग्ज़्हौ के पर्यटन उद्योग को एक बहुत बड़ा प्रोत्साहन मिला| उसके बाद स्कूल के दिनों में ही जैक, एक टूर गाइड के रूप में काम करने लगे ताकि वे कुछ पैसे कमाने के साथ साथ अंग्रेजी भी सीख सकें| वो पहला मौक़ा था जब जैक, टूर गाईड के रूप में बाहरी दुनिया के लोगो के संपर्क में आये|
स्कूल के बाद जैक ने कॉलेज के लिए आवेदन किया लेकिन कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में वे 3 बार फेल हुए| उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय प्रवेश के लिए 10 बार आवेदन किया था लेकिन एक बार भी वे सफल नहीं हए| पर आखिर में उन्हें हंग्ज़्हौ के टीचर इंस्टिट्यूट में दाखिला मिल गया, जहाँ से सन 1988 में उन्होंने अंग्रेजी भाषा में स्नातक किया|
शायद आपको लगे की इतनी बड़ी कंपनी के संस्थापक के लिए गणित तो बहुत ही आसान विषय होगी| पर वास्तविकता इससे कोसो दूर है| अपने कॉलेज में गणित की परीक्षा में उन्हें एक बार 120 अंकों में केवल 1 अंक प्राप्त हुआ था| खुद जैक मा के शब्दों में,मैं गणित में अच्छा नहीं हूँ, कभी मैनेजमेंट की पढ़ाई नहीं की और अब भी एकाउंटिंग रिपोर्ट को पढ़ना नहीं जानता”

30 कंपनियों ने रिजेक्ट किया, नहीं मिली नौकरी – Jack Ma Was Rejected From 30 Jobs

कॉलेज के बाद उन्होंने करीब 30 कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया और सभी कंपनियों ने उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया| उनके खुद के शब्दों में –
“मैंने पुलिस की नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन उन्होंने मेरे आवेदन को यह कहकर अस्वीकार कर दिया मैं इस नौकरी के लायक नहीं हूँ|”
“जब हमारे शहर में KFC कम्पनी ने अपना स्टोर खोला, तो मैंने KFC में जॉब के लिए आवेदन किया| कुल 24 लोगों ने KFC में जॉब के लिए आवेदन किया था जिसमें से 23 लोगों का आवेदन स्वीकार हो गया, सिवाय मेरे|”
आखिरकार उन्हे 800 रुपये प्रति माह पर एक शिक्षक की नौकरी मिली, जहाँ वे विद्यार्थियों के बीच काफी मशहूर हुए| बाद में जब उन्होंने एक अनुवादक (ट्रांसलेटर) के रूप में कार्य करना शुरू किया तब एक बार उन्हें अमेरिका जाने का मौका मिला| वहीं पहली बार सन 1995 में वे इन्टरनेट की दुनिया से रुबरु हुए|

इन्टरनेट की दुनिया में पहला कदम – When Jack Ma First Discovered The Internet

इन्टरनेट को जानने के बाद सबसे पहले उन्होंने चीन के बियर की जानकारी देने वाली एक नई वेबसाइट बनाई, जिसका नाम उन्होंने ‘चाईनापेज’ रखा। बेहतर निवेश के लिए उन्होंने एक सरकारी निकाय के साथ साझेदारी की। पर सरकारी नौकरशाही ने धीरे-धीरे उनके इस सपने और परियोजना का दम घोंटना शुरु कर दिया, जिसके कारण अंतत: उन्हे उस सरकारी निकाय से अलग होना ही पड़ा| इससे उन्हें एक बहुत बड़ा सबक मिला, जिसके बारे में वो कहते हैं कि
“सरकार से प्यार करें, पर शादी कभी नहीं”
आखिरकार निवेश की कमी जैसे कई कारणों से उनकी यह परियोजना सफल न हो सकी|

अलीबाबा की शुरुआत और सफलता – Success Story of Alibaba

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“चाइनापेज” की असफलता के बाद उन्होंने एक बिल्कुल ही नए विचार पर काम करने की सोची और वह विचार था – एक ऐसे वेबसाइट की स्थापना करना जो अलग-अलग व्यवसायों के बाजारों के लिए एक ख़ास पोर्टल प्रदान करे और जहाँ दुनिया के विभिन्न जगहों के निर्यातक अपने उत्पादों की एक विस्तृत सूची पेश कर सकें| जैक मा ने इस वेबसाइट का नाम “अलीबाबा” रखा|
पहले-पहले अलीबाबा में निवेश के लिए जैक मा ने सिलिकॉन वैली की ओर रुख किया, जहाँ उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी| यहां तक की सिलिकॉन वैली में कईयों ने तो उनकी इस परियोजना को एक असफल और घाटेवाला बिज़नस मॉडल करार दिया|
पर उन्होंने अपने इस सपने को टूटने नहीं दिया और जल्दी ही वो वक्त भी आया जब दो बड़ी कंपनियों – गोल्डमैन सैक्स और सॉफ्टबैंक, ने अलीबाबा डॉट कॉम में कुल 25 मिलियन डॉलर का निवेश किया|
इतने पर भी अलीबाबा से कोई लाभ न होता देख जैक मा और उनकी टीम ने 2003 में ‘ताओबाओ डॉट कॉम’ नाम से एक ऑक्शन वेबसाइट (नीलामी की वेबसाइट) बनाई, जिस पर सामानों की नीलामी निःशुल्क थी| इस वेबसाइट का निर्माण सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी ईबे (eBay) को पछाड़ने के लिए किया गया था, जिसका पहले से ही चीन के नीलामी बाजार के बड़े हिस्से पर प्रभुत्व था| ताओबाओ पर निःशुल्क सेवा प्रदान करने की वजह से अलीबाबा पर बहुत अधिक आर्थिक दबाव बनने लगा। इस दबाव को कम करने के लिए मा और उसकी टीम कई अतिरिक्त वैल्यू-एडेड सेवाएँ उपलब्ध कराने लगी, जैसे कस्टम वेबपेजेज| पाँच वर्षों में ही ईबे को चीन के बाजार से अपने कदम पीछे खीचने पड़े|
खुद से कहीं ज्यादा बड़े प्रतिद्वंदी से भिड़ने में तो जैसे “जैक मा” को एक अलग ही आनंद प्राप्त होता था| ईबे से अपनी इस लड़ाई के बारे में जैक मा कहते हैं,
अगर ईबे (e Bay)समंदर का शार्क है, तो हम (अलीबाबा और ताओबाओ) यांग्त्ज़ी नदी के मगरमच्छ हैं”
इसके बाद इस कंपनी ने कई उतार-चढ़ाव देखा| एक समय तो ऐसा भी आया जब यह कंपनी दिवालिया बनने से केवल 18 महीने ही दूर थी| पर जैक मा के दृढ़संकल्प, दूरदर्शिता और बेमिशाल नेतृत्व की बदौलत अलीबाबा.कॉम (Alibaba) न सिर्फ उस संकट से उबर पाई, बल्कि बहुत ही जल्द सफलता के नए शिखर पर पहुँच गयी| 2013 में 10 लाख करोड़ रूपये के आईपीओ साथ यूएस मार्किट में सबसे बड़ी आईपीओ वाली कंपनी बनकर उभरी है| खुद जैक मा की संपत्ति 23 बिलियन डॉलर से भी अधिक आँकी गई है|
इस सफलता का कारण खुद जैक मा की काबिलियत और कभी न हार मानने की जिद थी, जिसे खुद उन्हीं के उन शब्दो से समझा जा सकता है जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी टीम को प्रोत्साहित करने के लिए किया था,
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हम सफल हो कर रहेंगे क्योंकि हम कभी भी हार नहीं मानते”

सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

नामुनकिन कुछ भी नहीं

नामुनकिन कुछ भी नहीं

Wilma Rudolph

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विल्मा रुडोल्फ का जन्म अमेरिका के टेनेसी प्रान्त के एक गरीब घर में हुआ था| चार साल की उम्र में विल्मा रूडोल्फ को पोलियो हो गया और वह विकलांग हो गई| विल्मा रूडोल्फ केलिपर्स के सहारे चलती थी। डाक्टरों ने हार मान ली और कह दिया कि वह कभी भी जमीन पर चल नहीं पायेगी।
विल्मा रूडोल्फ की मां सकारात्मक मनोवृत्ति महिला थी और उन्होंने विल्मा को प्रेरित किया और कहा कि तुम कुछ भी कर सकती हो इस संसार में नामुनकिन कुछ भी नहीं|
विल्मा ने अपनी माँ से कहा ‘‘क्या मैं दुनिया की सबसे तेज धावक बन सकती हूं ?’’
माँ ने विल्मा से कहा कि ईश्वर पर विश्वास, मेहनत और लगन से तुम जो चाहो वह प्राप्त कर सकती हो|
नौ साल की उम्र में उसने जिद करके अपने ब्रेस निकलवा दिए और चलना प्रारम्भ किया। केलिपर्स उतार देने के बाद चलने के प्रयास में वह कई बार चोटिल हुयी एंव दर्द सहन करती रही लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी एंव लगातार कोशिश करती गयी| आखिर में जीत उसी की हुयी और एक-दो वर्ष बाद वह बिना किसी सहारे के चलने में कामयाब हो गई|
उसने 13 वर्ष की उम्र में अपनी पहली दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे अंतिम स्थान पर आई। लेकिन उसने हार नहीं मानी और और लगातार दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती गयी| कई बार हारने के बावजूद वह पीछे नहीं हटी और कोशिश करती गयी| और आखिरकार एक ऐसा दिन भी आया जब उसने प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया।
15 वर्ष की अवस्था में उसने टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ उसे कोच एड टेम्पल मिले| विल्मा ने टेम्पल को अपनी इच्छा बताई और कहा कि वह सबसे तेज धाविका बनना चाहती है| कोच ने उससे कहा – ‘‘तुम्हारी इसी इच्छाशक्ति की वजह से कोई भी तुम्हे रोक नहीं सकता और मैं इसमें तुम्हारी मदद करूँगा”.
विल्मा ने लगातार कड़ी मेहनत की एंव आख़िरकार उसे ओलम्पिक में भाग लेने का मौका मिल ही गया| विल्मा का सामना एक ऐसी धाविका (जुत्ता हेन) से हुआ जिसे अभी तक कोई नहीं हरा सका था|
पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमे विल्मा ने जुता को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया एंव दूसरी रेस (200 मीटर) में भी विल्मा के सामने जुता ही थी इसमें भी विल्मा ने जुता को हरा दिया और दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया|
तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और विल्मा का मुकाबला एक बार फिर जुत्ता से ही था। रिले में रेस का आखिरी हिस्सा टीम का सबसे तेज एथलीट ही दौड़ता है। विल्मा की टीम के तीन लोग रिले रेस के शुरूआती तीन हिस्से में दौड़े और आसानी से बेटन बदली।
जब विल्मा के दौड़ने की बारी आई, उससे बेटन छूट गयी। लेकिन विल्मा ने देख लिया कि दुसरे छोर पर जुत्ता हेन तेजी से दौड़ी चली आ रही है। विल्मा ने गिरी हुई बेटन उठायी और मशीन की तरह तेजी से दौड़ी तथा जुत्ता को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीता।
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इस तरह एक विकलांग महिला (जिसे डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कभी चल नहीं पायेगी) विश्व की सबसे तेज धाविका बन गयी और यह साबित कर दिया की इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं (Nothing is impossible)|
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