बुधवार, 28 मार्च 2018

कहानी : खुद को बदलिए : Change Yourself Hindi Story

कहानी : खुद को बदलिए : Change Yourself Hindi Story

कहानी : Hindi Story – Change Yourself 



एक नगर में एक राजा रहता था| राजा जब भी महल से बाहर जाता, हमेशा अपने घोड़े पर ही जाता था| एक बार वह अपने नगर को देखने एंव जनता की समस्याओं को सुनने के लिए पैदल ही भ्रमण पर निकला| उस समय जूते नहीं होते थे इसलिए जमींन पर कंकड़ और पत्थरों के कारण राजा के पैर दुखने लगे| राजा ने इस समस्या के हल के लिए अपने मंत्रियों की एक बैठक बुलाई|


ज्यादातर मंत्रियों का यही सुझाव था कि क्यों न पूरे नगर के रास्ते को चमड़े की मोटी परत से ढक दिया जाए|
लेकिन इसके लिए बहुत सारे धन एंव अन्य संसाधनों की जरूरत थी|
तभी राजा के पास खड़े एक सिपाही ने सुझाव दिया कि पूरे नगर को चमड़े की परत से ढकने से अच्छा यह है कि क्यों न हम अपने पैरों को ही चमड़े की परत से ढक दें| इससे न केवल हमारे पैर सुरक्षित रहेंगे बल्कि ज्यादा धन भी खर्च नहीं होगा|
सिपाही का सुझाव सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और उसने सभी के लिए “जूते” बनवाने का आदेश दिया|

Moral of the Hindi Story

Change Yourself – “खुद में वो बदलाव कीजिए जो आप इस संसार में देखना चाहते है|”

शनिवार, 16 दिसंबर 2017

JOKES

JOKES
  • आलिया भट्ट एक दुकान में गयी..
    आलिया : 2 BHK का क्या भाव है ?
    दुकानदार: ये रेडीमेड कपड़ों की दुकान है..
    आलिया : लेकिन बाहर तो लिखा है “Flat 70% Off”..दुकानदार कोमा में है।
  • GST क्या है?
    आलिया भट्ट: “Goodnight Sweetdreams Takecare”
  • संता :-आज फिर मुझे आलिया भट्ट को किस करने को दिल कर रहा है ।
    बंता:-क्या ??????तुम आलिया को पहले किस कर चुके हो?
    संता:- नहीं, एक बार पहले भी दिल किया था ! 😀
  • मोदी : There is no word like impossible in my dictionary.
    Alia : अब बोलने का क्या फायदा ? ? जब खरीदी थी तभी check करना था ना ।
  • arjun : hey alia , तुम्हारा account hacked हो गया…..
    alia : कौन सा account?
    arjun : bank account
    alia : thank God… 1 सेकंड के लिए मैंने सोचा FB Account
  • Alia Bhatt – Safola oil तो दे दिया भईया … इसके साथ का गिफ्ट नहीं दिया ….
    Shopkeeper – इसके साथ कोई गिफ्ट नहीं है….
    Alia – उल्लू मत बनाओ इसमें लिखा है “Cholesterol Free”
  • Varun – तुम खाली पेट कितने सेब खा सकती हो ?
    Alia – मैं 6 सेब खा सकती हूँ।
    Varun – गलत , तुम सिर्फ 1 सेब खा सकती हो क्यूंकि जब तुम दूसरा खाओगी तो तुम्हारा पेट खाली नहीं होगा !
    Alia: Wow superb joke. मैं अपने दोस्तों को बताऊंगी। ….
    Aliya to Shraddha – तुम खाली पेट कितने सेब खा सकती हो ?
    Shraddha – मैं 10 सेब खा सकती हूँ।
    Alia – पागल … 6 बोलती तो मस्त joke सुनाती !!
  • Rajnikant vs Alia.
    Question to both in a competition.
    What is half of 8?
    Rajni: 4
    Alia: Depend करता है… अगर horizontally half करो तो ”0” और vertically करो तो ”3”
    Rajnikant still unconcious…!!!
  • Alia bhatt: Hey dad, what plans for weekend ?
    Mahesh bhatt: Income Tax Returns.
    Alia bhatt: Hey first part कब रिलीज़ हुआ था ?
  • SBI Bank: हमारा बैंक आपको बिना interest के loan दे रहा है…..
    Alia bhat: अगर देने में interest ही नहीं है तो क्यों दे रहे हो ? नहीं चाहिए ….
  • Alia bhatt और varun dhawan रास्ते पर जा रहे थे … उन्हें 1000 का नोट मिला……
    Alia – अब हमें क्या करना चाहिए ?
    Varun- हम 50:50 रख लेंगे
    Alia- और बाकी के 900 का क्या ?

गोलू-मोलू और भालू

गोलू-मोलू और भालू

गोलू-मोलू और भालू


गोलू-मोलू और पक्के दोस्त थे। गोलू जहां दुबला-पतला था, वहीं मोलू मोटा गोल-मटोल। दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे, लेकिन उनकी जोड़ी देखकर लोगों की हंसी छूट जाती। एक बार उन्हें किसी दूसरे गांव में रहने वाले मित्र का निमंत्रण मिला। उसने उन्हें अपनी बहन के विवाह के अवसर पर बुलाया था।


उनके मित्र का गांव कोई बहुत दूर तो नहीं था लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए जंगल से होकर गुजरना पड़ता था। और उस जंगल में जंगली जानवरों की भरमार थी।

दोनों चल दिए…जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे तो उन्हें सामने से एक भालू आता दिखा। उसे देखकर दोनों भय से थर-थर कांपने लगे। तभी दुबला-पतला गोलू तेजी से दौड़कर एक पेड़ पर जा चढ़ा, लेकिन मोटा होने के कारण मोलू उतना तेज नहीं दौड़ सकता था। उधर भालू भी निकट आ चुका था, फिर भी मोलू ने साहस नहीं खोया। उसने सुन रखा था कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह तुरंत जमीन पर लेट गये और सांस रोक ली। ऐसा अभिनय किया कि मानो शरीर में प्राण हैं ही नहीं। भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके चेहरे व शरीर को सूंघा और उसे मृत समझकर आगे बढ़ गया।

जब भालू काफी दूर निकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू के निकट आया और बोला, ‘‘मित्र, मैंने देखा था….भालू तुमसे कुछ कह रहा था। क्या कहा उसने ?’’

मोलू ने गुस्से में भरकर जवाब दिया, ‘‘मुझे मित्र कहकर न बुलाओ…और ऐसा ही कुछ भालू ने भी मुझसे कहा। उसने कहा, गोलू पर विश्वास न करना, वह तुम्हारा मित्र नहीं है।’’

सुनकर गोलू शर्मिन्दा हो गया। उसे अभ्यास हो गया था कि उससे कितनी भारी भूल हो गई थी। उसकी मित्रता भी सदैव के लिए समाप्त हो गई। 



शिक्षा—सच्चा मित्र वही है जो संकट के काम आए।





मूर्ख गधा

मूर्ख गधा

मूर्ख गधा 

एक जंगल में एक शेर रहता था। गीदड उसका सेवक था। जोडी अच्छी थी। शेरों के समाज में तो उस शेर की कोई इज्जत नहीं थी, क्योंकि वह जवानी में सभी दूसरे शेरों से युद्ध हार चुका था, इसलिए वह अलग-थलग रहता था। उसे गीदड जैसे चमचे की सख्त जरुरत थी जो चौबीस घंटे उसकी चमचागिरी करता रहे। गीदड को बस खाने का जुगाड चाहिए था। पेट भर जाने पर गीदड उस शेर की वीरता के ऐसे गुण गाता कि शेर का सीना फूलकर दुगना चौडा हो जाता।

एक दिन शेर ने एक बिगडैल जंगली सांड का शिकार करने का साहस कर डाला। सांड बहुत शक्तिशाली था। उसने लात मारकर शेर को दूर फेंक दिया, जब वह उठने को हुआ तो सांड ने फां-फां करते हुए शेर को सीगों से एक पेड के साथ रगड दिया।

किसी तरह शेर जान बचाकर भागा। शेर सींगो की मार से काफी जख्मी हो गया था। कई दिन बीते, परन्तु शेर के जख्म टीक होने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसी हालत में वह शिकार नहीं कर सकता था। स्वयं शिकार करना गीदड के बस का नहीं था। दोनों के भूखों मरने की नौबत आ गई। शेर को यह भी भय था कि खाने का जुगाड समाप्त होने के कारण गीदड उसका साथ न छोड जाए।

शेर ने एक दिन उसे सुझाया “देख, जख्मों के कारण मैं दौड नहीं सकता। शिकार कैसे करुं? तु जाकर किसी बेवकूफ-से जानवर को बातों में फंसाकर यहां ला। मैं उस झाडी में छिपा रहूंगा।”

गीदड को भी शेर की बात जंच गई। वह किसी मूर्ख जानवर की तलाश में घूमता-घूमता एक कस्बे के बाहर नदी-घाट पर पहुंचा। वहां उसे एक मरियल-सा गधा घास पर मुंह मारता नजर आया। वह शक्ल से ही बेवकूफ लग रहा था।

गीदड गधे के निकट जाकर बोला “पांय लागूं चाचा। बहुत कमजोर हो अए हो, क्या बात हैं?”

गधे ने अपना दुखडा रोया “क्या बताऊं भाई, जिस धोबी का मैं गधा हूं, वह बहुत क्रूर हैं। दिन भर ढुलाई करवाता हैं और चारा कुछ देता नहीं।”

गीदड ने उसे न्यौता दिया “चाचा, मेरे साथ जंगल चलो न, वहां बहुत हरी-हरी घास हैं। खूब चरना तुम्हारी सेहत बन जाएगी।”

गधे ने कान फडफडाए “राम राम। मैं जंगल में कैसे रहूंगा? जंगली जानवर मुझे खा जाएंगे।”

“चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं कि जंगल में एक बगुला भगतजी का सत्संग हुआ था। उसके बाद सारे जानवर शाकाहारी बन गए हैं। अब कोई किसी को नहीं खाता।” गीदड बोला और कान के पास मुंह ले जाकर दाना फेंका “चाचू, पास के कस्बे से बेचारी गधी भी अपने धोबी मालिक के अत्याचारों से तंग आकर जंगल में आ गई थी। वहां हरी=हरी घास खाकर वह खूब लहरा गई हैं तुम उसके साथ घर बसा लेना।”

गधे के दिमाग पर हरी-हरी घास और घर बसाने के सुनहरे सपने छाने लगे। वह गीदड के साथ जंगल की ओर चल दिया। जंगल में गीदड गधे को उसी झाडी के पास ले गया, जिसमें शेर छिपा बैठा था।इससे पहले कि शेर पंजा मारता, गधे को झाडी में शेर की नीली बत्तियों की टरह चमकती आंखे नजर आ गईं। वह डरकर उछला गधा भागा और भागताही गया। शेर बुझे स्वर में गीदड से बोला “भई, इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम उसे दोबारा लाओ इस बार गलती नहीं होगी।”

गीदड दोबारा उस गधे की तलाश में कस्बे में पहुंचा। उसे देखते ही बोला “चाचा, तुमने तो मेरी नाक कटवा दी। तुम अपनी दुल्हन से डरकर भाग गए?”

“उस झाडी में मुझे दो चमकती आंखे दिखाई दी थी, जैसे शेर की होती हैं। मैं भागता न तो क्या करता?” गधे ने शिकायत की।

गीदड झूठमूठ माथा पीटकर बोला “चाचा ओ चाचा! तुम भी निरे मूर्ख हो। उस झाडी में तुम्हारी दुल्हन थी। जाने कितने जन्मों से वह तुम्हारी राह देख रही थी। तुम्हें देखकर उसकी आंखे चमक उठी तो तुमने उसे शेर समझ लिया?”

गधा बहुत लज्जित हुआ, गीदड की चाल-भरी बातें ही ऐसी थी। गधा फिर उसके साथ चल पडा। जंगल में झाडी के पास पहुंचते ही शेर ने नुकीले पंजो से उसे मार गिराया। इस प्रकार शेर व गीदड का भोजन जुटा।



सीखः दूसरों की चिकनी-चुपडी बातों में आने की मूर्खता कभी नहीं करनी चाहिए।





गजराज व मूषकराज

गजराज व मूषकराज

गजराज व मूषकराज


प्राचीन काल में एक नदी के किनारे बसा नगर व्यापार का केन्द्र था। फिर आए उस नगर के बुरे दिन, जब एक वर्ष भारी वर्षा हुई। नदी ने अपना रास्ता बदल दिया।

लोगों के लिए पीने का पानी न रहा और देखते ही देखते नगर वीरान हो गया अब वह जगह केवल चूहों के लायक रह गई। चारों ओर चूहे ही चूहे नजर आने लगे। चूहो का पूरा साम्राज्य ही स्थापित हो गया। चूहों के उस साम्राज्य का राजा बना मूषकराज चूहा। चूहों का भाग्य देखो, उनके बसने के बाद नगर के बाहर जमीन से एक पानी का स्त्रोत फूट पडा और वह एक बडा जलाशय बन गया।

नगर से कुछ ही दूर एक घना जंगल था। जंगल में अनगिनत हाथी रहते थे। उनका राजा गजराज नामक एक विशाल हाथी था। उस जंगल क्षेत्र में भयानक सूखा पडा। जीव-जन्तु पानी की तलाश में इधर-उधर मारे-मारे फिरने लगे। भारी भरकम शरीर वाले हाथियों की तो दुर्दशा हो गई।

हाथियों के बच्चे प्यास से व्याकुल होकर चिल्लाने व दम तोडने लगे। गजराज खुद सूखे की समस्या से चिंतित था और हाथियों का कष्ट जानता था। एक दिन गजराज की मित्र चील ने आकर खबर दी कि खंडहर बने नगर के दूसरी ओर एक जलाशय हैं। गजराज ने सबको तुरंत उस जलाशय की ओर चलने का आदेश दिया। सैकडों हाथी प्यास बुझाने डोलते हुए चल पडे। जलाशय तक पहुंचने के लिए उन्हें खंडहर बने नगर के बीच से गुजरना पडा।

हाथियों के हजारों पैर चूहों को रौंदते हुए निकल गए। हजारों चूहे मारे गए। खंडहर नगर की सडकें चूहों के खून-मांस के कीचड से लथपथ हो गई। मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। हाथियों का दल फिर उसी रास्ते से लौटा। हाथी रोज उसी मार्ग से पानी पीने जाने लगे।

काफी सोचने-विचारने के बाद मूषकराज के मंत्रियों ने कहा “महाराज, आपको ही जाकर गजराज से बात करनी चाहिए। वह दयालु हाथी हैं।” मूषकराज हाथियों के वन में गया। एक बडे पेड के नीचे गजराज खडा था।

मूषकराज उसके सामने के बडे पत्थर के ऊपर चढा और गजराज को नमस्कार करके बोला “गजराज को मूषकराज का नमस्कार। हे महान हाथी, मैं एक निवेदन करना चाहता हूं।”

आवाज गजराज के कानों तक नहीं पहुंच रही थी। दयालु गजराज उसकी बात सुनने के लिए नीचे बैठ गया और अपना एक कान पत्थर पर चढे मूषकराज के निकट ले जाकर बोला “नन्हें मियां, आप कुछ कह रहे थे। कॄपया फिर से कहिए।”

मूषकराज बोला “हे गजराज, मुझे चूहा कहते हैं। हम बडी संख्या में खंडहर बनी नगरी में रहते हैं। मैं उनका मूषकराज हूं। आपके हाथी रोज जलाशय तक जाने के लिए नगरी के बीच से गुजरते हैं। हर बार उनके पैरों तले कुचले जाकर हजारों चूहे मरते हैं। यह मूषक संहार बंद न हुआ तो हम नष्ट हो जाएंगे।”

गजराज ने दुख भरे स्वर में कहा “मूषकराज, आपकी बात सुन मुझे बहुत शोक हुआ। हमें ज्ञान ही नहीं था कि हम इतना अनर्थ कर रहे हैं। हम नया रास्ता ढूढ लेंगे।”

मूषकराज कॄतज्ञता भरे स्वर में बोला “गजराज, आपने मुझ जैसे छोटे जीव की बात ध्यान से सुनी। आपका धन्यवाद। गजराज, कभी हमारी जरुरत पडे तो याद जरुर कीजिएगा।”

गजराज ने सोचा कि यह नन्हा जीव हमारे किसी काम क्या आएगा। सो उसने केवल मुस्कुराकर मूषकराज को विदा किया। कुछ दिन बाद पडौसी देश के राजा ने सेना को मजबूत बनाने के लिए उसमें हाथी शामिल करने का निर्णय लिया। राजा के लोग हाथी पकडने आए। जंगल में आकर वे चुपचाप कई प्रकार के जाल बिछाकर चले जाते हैं। सैकडों हाथी पकड लिए गए। एक रात हाथियों के पकडे जाने से चिंतित गजराज जंगल में घूम रहे थे कि उनका पैर सूखी पत्तियों के नीचे छल से दबाकर रखे रस्सी के फंदे में फंस जाता हैं। जैसे ही गजराज ने पैर आगे बढाया रस्सा कस गया। रस्से का दूसरा सिरा एक पेड के मोटे तने से मजबूती से बंधा था। गजराज चिंघाडने लगा। उसने अपने सेवकों को पुकारा, लेकिन कोई नहीं आया।कौन फंदे में फंसे हाथी के निकट आएगा? एक युवा जंगली भैंसा गजराज का बहुत आदर करता था। जब वह भैंसा छोटा था तो एक बार वह एक गड्ढे में जा गिरा था। उसकी चिल्लाहट सुनकर गजराज ने उसकी जाअन बचाई थी। चिंघाड सुनकर वह दौडा और फंदे में फंसे गजराज के पास पहुंचा। गजराज की हालत देख उसे बहुत धक्का लगा। वह चीखा “यह कैसा अन्याय हैं? गजराज, बताइए क्या करुं? मैं आपको छुडाने के लिए अपनी जान भी दे सकता हूं।”

गजराज बोले “बेटा, तुम बस दौडकर खंडहर नगरी जाओ और चूहों के राजा मूषकराजा को सारा हाल बताना। उससे कहना कि मेरी सारी आस टूट चुकी हैं।

भैंसा अपनी पूरी शक्ति से दौडा-दौडा मूषकराज के पास गया और सारी बात बताई। मूषकराज तुरंत अपने बीस-तीस सैनिकों के साथ भैंसे की पीठ पर बैठा और वो शीघ्र ही गजराज के पास पहुंचे। चूहे भैंसे की पीठ पर से कूदकर फंदे की रस्सी कुतरने लगे। कुछ ही देर में फंदे की रस्सी कट गई व गजराज आजाद हो गए।

सीखः आपसी सदभाव व प्रेम सदा एक दूसरे के कष्टों को हर लेते हैं।






खरगोश की चतुराई

खरगोश की चतुराई

खरगोश की चतुराई

किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा।

सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें। दूसरे दिन जानवरों के एकदल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो ?’’

जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें।

 आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें। हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनों ही चैन से रह सकेंगे।’’ शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात नहीं है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’ जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये।

उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था। उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली।

खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी।

भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो। जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा। एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं।’’

नन्हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे। वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, ‘इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।’’

यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, ‘‘क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ?’’

‘‘महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था। वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है। हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे।’

‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।’

‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो। मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।’’

खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा। ‘‘मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’ ‘‘बहुत अच्छा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत ही उस दुष्ट की सजा है। अगर मैं और बड़ा और मजबूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।’’

‘‘चलो, ‘रास्ता दिखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ किधर चलना है ?’’

‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है। जरा सावधान रहियेगा। किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है।’’ ‘‘मैं उससे निपट लूँगा,’’ शेर ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ?’’

‘‘पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।’’

खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी।

परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा।

कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई। दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।



हमेशा बुद्धि की जीत होती है 





कौए और उल्लू

कौए और उल्लू

कौए और उल्लू

बहुत समय पहले की बात हैं कि एक वन में एक विशाल बरगद का पेड कौओं की राजधानी था। हजारों कौए उस पर वास करते थे। उसी पेड पर कौओं का राजा मेघवर्ण भी रहता था।

बरगद के पेड के पास ही एक पहाडी थी, जिसमें असंख्य गुफाएं थीं। उन गुफाओं में उल्लू निवास करते थे, उनका राजा अरिमर्दन था। अरिमर्दन बहुत पराक्रमी राजा था। कौओं को तो उसने उल्लुओं का दुश्मन नम्बर एक घोषित कर्र रखा था। उसे कौओं से इतनी नफरत थी कि किसी कौए को मारे बिना वह भोजन नहीं करता था।

जब बहुत अधिक कौए मारे जाने लगे तो उनके राजा मेघवर्ण को बहुत चिन्ता हुई। उसने कौओं की एक सभा इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई। मेघवर्ण बोला “मेरे प्यारे कौओ, आपको तो पता ही हैं कि उल्लुओं के आक्रमणों के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया हैं। हमारा शत्रु शक्तिशाली हैं और अहंकारी भी। हम पर रात को हमले किए जाते हैं। हम रात को देख नहीं पाते। हम दिन में जवाबी हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरों में सुरक्षित बैठे रहते हैं।”

फिर मेघवर्ण ने स्याने और बुद्धिमान कौओं से अपने सुझाव देने के लिए कहा।

एक डरपोक कौआ बोला “हमें उल्लूं से समझौता कर लेना चाहिए। वह जो शर्ते रखें, हम स्वीकार करें। अपने से तकतवर दुश्मन से पिटते रहने में क्या तुक है?”

बहुत-से कौओं ने कां कां करके विरोध प्रकट किया। एक गर्म दिमाग का कौआ चीखा “हमें उन दुष्टों से बात नहीं करनी चाहिए। सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो।”

एक निराशावादी कौआ बोला “शत्रु बलवान हैं। हमें यह स्थान छोडकर चले जाना चाहिए।”

स्याने कौए ने सलाह दी “अपना घर छोडना ठीक नहीं होगा। हम यहां से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे। हमे यहीं रहकर और पक्षियों से सहायता लेनी चाहिए।”

कौओं में सबसे चतुर व बुद्धिमान स्थिरजीवी नामक कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबकी दलीलें सुन रहा था। राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुडा “महाशय, आप चुप हैं। मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।”

स्थिरजीवी बोला “महाराज, शत्रु अधिक शक्तिशाली हो तो छलनीति से काम लेना चाहिए।”

“कैसी छलनीति? जरा साफ-साफ बताइए, स्थिरजीवी।” राजा ने कहा।

स्थिरजीवी बोला “आप मुझे भला-बुरा कहिए और मुझ पर जानलेवा हमला कीजिए।’

मेघवर्ण चौंका “यह आप क्या कह रहे हैं स्थिरजीवी?”

स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण वाली डाली पर जाकर कान मे बोला “छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पडेगा। हमारे आसपास के पेडों पर उल्लू जासूस हमारी इस सभा की सारी कार्यवाही देख रहे हैं। उन्हे दिखाकर हमें फूट और झगडे का नाटक करना होगा। इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें। मैं उल्लुओं के दल में शामिल होकर उनके विनाश का सामान जुटाऊंगा। घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाऊंगा।”

फिर नाटक शुरु हुआ। स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला “मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा कर राजा के बच्चे। क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?”

मेघावर्ण चीख उठा “गद्दार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?”कई कौए एक साथ चिल्ला उठे “इस गद्दार को मार दो।”

राजा मेघवर्ण ने अपने पंख से स्थिरजीवी को जोरदार झापड मारकर तनी से गिरा दिया और घोषणा की “मैं गद्दार स्थिरजीवी को कौआ समाज से निकाल रहा हूं। अब से कोई कौआ इस नीच से कोई संबध नेहीं रखेगा।”

आसपास के पेडों पर छिपे बैठे उल्लू जासूसों की आंखे चमक उठी। उल्लुओं के राजा को जासूसों ने सूचना दी कि कौओं में फूट पड गई हैं। मार-पीट और गाली-गलौच हो रही हैं। इतना सुनते ही उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा “महाराज, यही मौका हैं कौओं पर आक्रमण करने का। इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे।”

उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की बता सही लगी। उसने तुरंत आक्रमण का आदेश दे दिया। बस फिर क्या था हजारों उल्लुओं की सेना बरगद के पेड पर आक्रमण करने चल दी। परन्तु वहां एक भी कौआ नहीं मिला।

मिलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत की ओर कूच कर गया था। पेड खाली पाकर उल्लुओं के राजा ने थूका “कौए हमारा सामना करने की बजाए भाग गए। ऐसे कायरों पर हजार थू।” सारे उल्लू ‘हू हू’ की आवाज निकालकर अपनी जीत की घोषणा करने लगे। नीचे झाडियों में गिरा पडा स्थिरजीवी कौआ यह सब देख रहा था। स्थिरजीवी ने कां-कां की आवाज निकाली। उसे देखकर जासूस उल्लू बोला “अरे, यह तो वही कौआ हैं, जिसे इनका राजा धक्का देकर गिरा रहा था और अपमानित कर रहा था।’

उल्लुओं का राजा भी आया। उसने पूछा “तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?” स्थिरजीवी बोला “मैं राजा मेघवर्ण का नीतिमंत्री था। मैंने उनको नेक सलाह दी कि उल्लुओं का नेतॄत्व इस समय एक पराक्रमी राजा कर रहे हैं। हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए। मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर कौओं की जाति से बाहर कर दिया। मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।”

उल्लुओं का राजा अरिमर्दन सोच में पड गया। उसके स्याने नीति सलाहकार ने कान में कहा “राजन, शत्रु की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए। यह हमारा शत्रु हैं। इसे मार दो।” एक चापलूस मंत्री बोला “नहीं महाराज! इस कौए को अपने साथ मिलाने में बडा लाभ रहेगा। यह कौओं के घर के भेद हमें बताएगा।”

राजा को भी स्थिरजीवी को अपने साथ मिलाने में लाभ नजर आया अओ उल्लू स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए। वहां अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा “स्थिरजीवी को गुफा के शाही मेहमान कक्षमें ठहराओ। इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।”

स्थिरजीवी हाथ जोडकर बोला “महाराज, आपने मुझे शरण दी, यही बहुत हैं। मुझे अपनी शाही गुफा के बाहर एक पत्थर पर सेवक की तरह ही रहने दीजिए। वहां बैठकर आपके गुण गाते रहने की ही मेरी इच्छा हैं।” इस प्रकार स्थिरजीवी शाही गुफा के बाहर डेरा जमाकर बैठ गया।

गुफा में नीति सलाहकार ने राजा से फिर से कहा “महाराज! शत्रु पर विश्वास मत करो। उसे अपने घर में स्थान देना तो आत्महत्या करने समान हैं।” अरिमर्दन ने उसे क्रोध से देखा “तुम मुझे ज्यादा नीति समझाने की कोशिश मत करो। चाहो तो तुम यहां से जा सकते हो।” नीति सलाहकार उल्लू अपने दो-तीन मित्रों के साथ वहां से सदा के लिए यह कहता हुआ “विनाशकाले विपरीत बुद्धि।”

कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकडियां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा “सरकार, सर्दियां आने वाली हैं। मैं लकडियों की झोपडी बनाना चाहता हूं ताकि ठंड से बचाव हो।’ धीरे-धीरे लकडियों का काफी ढेर जमा हो गया। एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे तो स्थिरजीवी वहां से उडकर सीधे ॠष्यमूक पर्वत पर पहुंचा, जहां मेघवर्ण और कौओं सहित उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्थिरजीवी ने कहा “अब आप सब निकट के जंगल से जहां आग लगी हैं एक-एक जलती लकडी चोंच में उठाकर मेरे पीछे आइए।”

कौओं की सेना चोंच में जलती लकडियां पकड स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ पहुंचा। स्थिरजीवी द्वारा ढेर लगाई लकडियों में आग लगा दी गई। सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए। राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी।

सीखः शत्रु को अपने घर में पनाह देना अपने ही विनाश का सामान जुटाना हैं।





एकता का बल

एकता का बल

एकता का बल


एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पडा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरुरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सुचित करना था। बहुत समय उडने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’

सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।

कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत?”

एक कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”

बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोडे तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।”

युवा कबूतर फडफडाया “चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?”

सरदार बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।”

सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल की ओर दौडा।

बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला “फुर्रर्रर्र!”

सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उडने लगे। कबूतरों को जाल सहित उडते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौडने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौडते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उडते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाडी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेजी से उस पहाडी की ओर उडने का आदेश दिया। पहाडी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे।

सरदार ने मित्र चूहे को आवाज दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आजादी की उडान भरने लगा।

सीखः एकजुट होकर बडी से बडी विपत्ति का सामना किया जा सकता हैं।





शिक्षाप्रद हिंदी कहानियां

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एक और एक ग्यारह

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एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नेहीं समझता था।

बनगिरी में ही एक पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।

चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”

चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?”

कठफोडवी ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”

“कैसे?” चिडिया ने पूछा।

“मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह् आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।”

मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।”

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे।

मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।

टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।

जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

सीखः 1.एकता में बल हैं।
2.अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।





शिक्षाप्रद हिंदी कहानियां ( moral stories in hindi)

आपस की फूट



प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावजूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम फल यह होता था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलती तो अगला कदम पश्चिम की ओर और भारूंड स्वयं को वहीं खडा पाता ता। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।

एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर धूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा “वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।”

“अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।” कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला “अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया हैं और इसे मैं ही खाऊंगा।”

“अरे! हम् दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर खानी चाहिए।” दूसरे सिर ने दलील दी। पहला सिर कहने लगा “ठीक! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमार एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी हैं।”

दूसरा सिर बोला “खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज हैं। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती हैं। खाने का असली मजा तो मुंह में ही हैं।”

पहला सिर तुनकर चिढाने वाले स्वर में बोला “मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोडे ही ले रखा हैं। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।” ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा।

इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पडी। उसे जिस चीज की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी “अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल हैं? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।”

दूसरा सिर हंसा “हे हे हे! तु चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना हैं कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?”

पहले सिर ने समझाने कि कोशिश की “तुने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।”

दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला “मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोडे ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।”

दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तडप-तडपकर मर गया।

सीखः आपस की फूट सदा ले डूबती हैं।





अक्लमंद हंस

अक्लमंद हंस

 अक्लमंद हंस

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एक बहुत बडा विशाल पेड था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उनमें एक बहुत स्याना हंस था,बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा “देखो,इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।”

एक युवा हंस हंसते हुए बोला “ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?”

स्याने हंस ने समझाया “आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही हैं। धीरे-धीरे यह पेड के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड पर चढने के लिए सीढी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढी के सहारे चढकर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।”

दूसरे हंस को यकीन न आया “एक छोटी सी बेल कैसे सीढी बनेगी?”

तीसरा हंस बोला “ताऊ, तु तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लम्बा कर रहा है।”

एक हंस बडबडाया “यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा हैं।”

इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी?

समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटह्टे ऊपर शाखों तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरु हुआ और सचमुच ही पेड के तने पर सीढी बन गई। जिस पर आसानी से चढा जा सकता था। सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी। एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिआ उधर आ निकला। पेड पर बनी सीढी को देखते ही उसने पेड पर चढकर जाल बिछाया और चला गया। सांझ को सारे हंस लौट आए पेड पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए। जब वे जाल में फंस गए और फडफडाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा। सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था।

एक हंस ने हिम्मत करके कहा “ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो।’

दूसरा हंस बोला “इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं। आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे।” सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया “मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकाल कर जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे समान पडे रहना। जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड जाना।”

सुबह बहेलिया आया। हंसो ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था। सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड गए। बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।

सीखः बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए।






Moral Hindi Stories (शिक्षाप्रद हिंदी कहानियां)

बडे नाम का चमत्कार



एक समय की बात है एक वन में हाथियों का एक झुंड रहता था। उस झुंड का सरदार चतुर्दंत नामक एक विशाल, पराक्रमी, गंभीर व समझदार हाथी था। सब उसी की छत्र-छाया में शुख से रहते थे। वह सबकी समस्याएं सुनता। उनका हल निकालता, छोटे-बडे सबका बराबर ख्याल रखता था। एक बार उस क्षेत्र में भयंकर सूखा पडा। वर्षों पानी नहीं बरसा। सारे ताल-तलैया सूखने लगे। पेड-पौधे कुम्हला गए धरती फट गई, चारों और हाहाकार मच गई। हर प्राणी बूंद-बूंद के लिए तरसता गया। हाथियों ने अपने सरदार से कहा “सरदार, कोई उपाय सोचिए। हम सब प्यासे मर रहे हैं। हमारे बच्चे तडप रहे हैं।”

चतुर्दंत पहले ही सारी समस्या जानता था। सबके दुख समझता था पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या उपाय करे। सोचते-सोचते उसे बचपन की एक बात याद आई और चतुर्दंत ने कहा “मुझे ऐसा याद आता हैं कि मेरे दादाजी कहते थे, यहां से पूर्व दिशा में एक ताल हैं, जो भूमिगत जल से जुडे होने के कारण कभी नहीं सूखता। हमें वहां चलना चाहिए।” सभी को आशा की किरण नजर आई।

हाथियों का झुंड चतुर्दंत द्वारा बताई गई दिशा की ओर चल पडा। बिना पानी के दिन की गर्मी में सफर करना कठिन था, अतः हाथी रात को सफर करते। पांच रात्रि के बाद वे उस अनोखे ताल तक पहुंच गए। सचमुच ताल पानी से भरा था सारे हातियों ने खूब पानी पिया जी भरकर ताल में नहाए व डुबकियां लगाईं।

उसी क्षेत्र में खरगोशों की घनी आबादी थी। उनकी शामत आ गई। सैकडों खरगोश हाथियों के पैरों-तले कुचले गए। उनके बिल रौंदे गए। उनमें हाहाकार मच गया। बचे-कुचे खरगोशों ने एक आपातकालीन सभा की। एक खरगोश बोला “हमें यहां से भागना चाहिए।”

एक तेज स्वभाव वाला खरगोश भागने के हक में नहीं था। उसने कहा “हमें अक्ल से काम लेना चाहिए। हाथी अंधविश्वासी होते हैं। हम उन्हें कहेंगे कि हम चंद्रवंशी हैं। तुम्हारे द्वारा किए खरगोश संहार से हमारे देव चंद्रमा रुष्ट हैं। यदि तुम यहां से नहीं गए तो चंद्रदेव तुम्हें विनाश का श्राप देंगे।”

एक अन्य खरगोश ने उसका समर्थन किया “चतुर ठीक कहता हैं। उसकी बात हमें माननी चाहिए। लंबकर्ण खरगोश को हम अपना दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेंजेगे।” इस प्रस्ताव पर सब सहमत हो गए। लंबकर्ण एक बहुत चतुर खरगोश था। सारे खरगोश समाज में उसकी चतुराई की धाक थी। बातें बनाना भी उसे खूब आता था। बात से बात निकालते जाने में उसका जवाब नहीं था। जब खरगोशों ने उसे दूत बनकर जाने के लिए कहा तो वह तुरंत तैयार हो गया। खरगोशों पर आए संकट को दूर करके उसे प्रसन्नता ही होगी। लंबकर्ण खरगोश चतुर्दंत के पास पहुंचा और दूर से ही एक चट्टान पर चढकर बोला “गजनायक चतुर्दंत, मैं लंबकर्ण चन्द्रमा का दूत उनका संदेश लेकर आया हूं। चन्द्रमा हमारे स्वामी हैं।”

चतुर्दंत ने पूछा ” भई,क्या संदेश लाए हो तुम ?”

लंबकर्ण बोला “तुमने खरगोश समाज को बहुत हानि पहुंचाई हैं। चन्द्रदेव तुमसे बहुत रुष्ट हैं। इससे पहले कि वह तुम्हें श्राप देदें, तुम यहां से अपना झुंड लेकर चले जाओ।”

चतुर्दंत को विश्वास न हुआ। उसने कहा “चंद्रदेव कहां हैं? मैं खुद उनके दर्शन करना चाहता हूं।”

लंबकर्ण बोला “उचित हैं। चंद्रदेव असंख्य मॄत खरगोशों को श्रद्धांजलि देने स्वयं ताल में पधारकर बैठे हैं, आईए, उनसे साक्षात्कार कीजिए और स्वयं देख लीजिए कि वे कितने रुष्ट हैं।” चालाक लंबकर्ण चतुर्दंत को रात में ताल पर ले आया। उस रात पूर्णमासी थी। ताल में पूर्ण चंद्रमा का बिम्ब ऐसे पड रहा था जैसे शीशे में प्रतिबिम्ब दिखाई पडता हैं। चतुर्दंत घबरा गया चालाक खरगोश हाथी की घबराहट ताड गया और विश्वास के साथ बोला “गजनायक, जरा नजदीक से चंद्रदेव का साक्षात्कार करें तो आपको पता लगेगा कि आपके झुंड के इधर आने से हम खरगोशों पर क्या बीती हैं। अपने भक्तों का दुख देखकर हमारे चंद्रदेवजी के दिल पर क्या गुजर रही है|”

लंबकर्ण की बातों का गजराज पर जादू-सा असर हुआ। चतुर्दंत डरते-डरते पानी के निकट गया और सूंड चद्रंमा के प्रतिबिम्ब के निकट ले जाकर जांच करने लगा। सूंड पानी के निकट पहुंचने पर सूंड से निकली हवा से पानी में हलचल हुई और चद्रंमा ला प्रतिबिम्ब कई भागों में बंट गया और विकॄत हो गया। यह देखते ही चतुर्दंत के होश उड गए। वह हडबडाकर कई कदम पीछे हट गया। लंबकर्ण तो इसी बात की ताक में था। वह चीखा “देखा, आपको देखते ही चंद्रदेव कितने रुष्ट हो गए! वह क्रोध से कांप रहे हैं और गुस्से से फट रहे हैं। आप अपनी खैर चाहते हैं तो अपने झुंड के समेत यहां से शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थान करें वर्ना चंद्रदेव पता नहीं क्या श्राप देदें।”

चतुर्दंत तुरंत अपने झुंड के पास लौट गया और सबको सलाह दी कि उनका यहां से तुरंत प्रस्थान करना ही उचित होगा। अपने सरदार के आदेश को मानकर हाथियों का झुंड लौट गया। खरगोशों में खुशी की लहर दौड गई। हाथियों के जाने के कुछ ही दिन पश्चात आकाश में बादल आए, वर्षा हुई और सारा जल संकट समाप्त हो गया। हाथियों को फिर कभी उस ओर आने की जरूरत ही नहीं पडी।

सीखः चतुराई से शारीरिक रुप से बलशाली शत्रु को भी मात दी जा सकती हैं।





मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी

सुभद्रा कुमारी चौहान


सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1905-15फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं।ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है।  वातावरण चित्रण-प्रधान की भाषा शैली सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।

जीवन परिचय

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में  जमींदार रामनाथसिंह के परिवार में हुआ था। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई।इसलिए बचपन से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। 1919 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं।  वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। डॉo मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है। साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है।सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने ‘मिला तेज से तेज’ नामक पुस्तक में लिखी है। इसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। 15 फरवरी 1948 को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया ।

साहित्य कृतियां

‘बिखरे मोती’ उनका पहला कहानी संग्रह है |  इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं | उनका पहला काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ ‘त्रिधारा’ में प्रकाशित हुई हैं। ‘झाँसी की रानी’ इनकी बहुचर्चित रचना है।
कविता : अनोखा दान, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास,कलह-कारण, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, झाँसी की रानी की समाधि पर, झांसी की रानी, झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन,प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली, मुरझाया फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन, मेरी टेक, मेरे पथिक, यह कदम्ब का पेड़-2, यह कदम्ब का पेड़, विजयी मयूर,विदा,वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साध, स्वदेश के प्रति, जलियाँवाला बाग में बसंत
सुभद्राजी को प्राय: उनके काव्य के लिए ही जाना जाता है लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी की |

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सम्मान पुरस्कार

भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है।
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